नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास : दुनिया को ज्ञान देने वाले इन विश्वविद्यालय का पतन कैसे हुआ

नालंदा विश्वविद्यालय का नाम तो हम सब ने सुना होगा बहुत लोगों ने सुना होगा और बहुत ऐसे लोग ऐसे होंगे जिनको इसके बारे नहीं पता होगा । तो आज हम आपको बताते हैं कि प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र था , नालंदा को प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता था जहां देश विदेश से अनेकों छात्र वर्ष प्रत्येक वर्ष शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। और ऐसा माना जाता था कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए बहुत ही कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता था । इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी । यह विश्वविद्यालय बिहार के पटना जिले से 90 किलोमीटर दक्षिण – पूर्व और राजगीर ( राजगृह ) से 12 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास स्थित है । इस विश्वविद्यालय में लगभग सभी विषयों की शिक्षा दी जाती थी चाहे वह राजनीति हो , दर्शन , चिकित्सा , विज्ञान आदि सभी प्रकार की शिक्षाएं यहाँ दी जाती थी और इसका वर्णन चीन से भारत भ्रमण करने आए चीनी यात्री हवेनसांग तथा इत्सिंग के द्वारा लिखी गई उनकी किताबों में भी आपको मिलेगा । चीनी यात्री हवेनसांग ने इस विश्वविद्यालय में एक साल तक शिक्षा भी ली थी । आपको बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय ऐसा पहला विश्वविद्यालय था जो पूरी तरह आवासीय था, और उस समय इस विश्वविद्यालय में लगभग 10,000 विद्यार्थी और 2000 शिक्षक थे। यहाँ पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई कोने से विद्यार्थी आते थे। इनमें कोरिया , जापान , चीन , तिब्बत , इन्डोनेशिया , फारस तथा तुर्की आदि जगहों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए यहाँ आते थे। लेकिन आज यह विश्वविद्यालय इतिहास के पन्नों में दबकर रह गया है । आज इस विश्वविद्यालय के बारे ने नई पीढ़ी के बच्चो को जानकारी तक नहीं है । जहां इस विश्वविद्यालय में दूसरे देशों से लोग पढ़ने आते थे वहीं आज इसका नाम हम अपने ही देश में इतिहास के रूप में पढ़ते हैं । आखिर क्या कारण था कि आज इस विश्वविद्यालय का पतन कर दिया गया । एक ऐसा विश्वविद्यालय जो पूरी दुनिया को ज्ञान देता था आज एक खंडहर और अवशेष के अलावा कुछ भी नहीं रहा गया है ।
नालंदा विश्वविद्यालय के पतन के कारण ;-
यूं तो नालंदा विश्वविद्यालय को तीन बार बर्बाद किया गया जिसमें से पहले के दो बार बर्बाद करने के बाद भी इस विश्वविद्यालय को पुनः निर्मित कर लिया गया लेकिन तीसरी बार ध्वस्त करने के बाद इस विश्वविद्यालय को कभी भी पुनः निर्माण नहीं किया गया ।
पहली बार इस विश्वविद्यालय को गुप्त वंश के शासक स्कंदगुप्त के शासन काल (455 – 467 ईस्वी) के दौरान मिहिरकुल के तहत ह्यून के कारण हुआ था । लेकिन स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारियों ने इसको पुनः निर्मित कर दिया।
दूसरी बार नालंदा विश्वविद्यालय को 7वीं शताब्दी में गौदास ने किया था और इस बार बौद्ध राजा हर्षवर्धन ने (606 – 648 ईस्वी) इसकी मरम्मत कारवाई । लेकिन तीसरी बार इस विश्वविद्यालय पर सबसे विनाशकारी हमला हुआ ,जब 1193 ईस्वी में तुर्क सेनापति इख्तियारूद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसकी सेना ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया और उसके संग्रहालय (Library) में आग लगवा दिया । उसके बाद से एक बड़े धर्म के रूप में उभरते हुए बौद्ध धर्म के अनुयाइयों को बहुत बड़ा झटका लगा जिससे उनको उभरने में सैकड़ों वर्ष लगे ।
नालंदा विश्वविद्यालय की कुछ महत्वपूर्ण और रोचक जानकारियाँ :-
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- नालंदा विश्वविद्यालय के संग्रहालय (Library) में 90 लाख पांडुलिपियाँ और हजारों किताबें रखी थी जिनको बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर जला दिया । और उस आग में 3 महीने तक किताबें जलती रहीं जिसको बुझाने में 6 महीने का समय लगा था ।
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- तक्षशिला के बाद नालंदा को दुनिया का दूसरी सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है । और यह विश्वविद्यालय 800 वर्षों तक अपने अस्तित्व में रहा ।
- नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का चयन मेरिट के आधार पर होता था और बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी साथ ही उनके रहने और खाने की व्यवस्था भी नि:शुल्क ही किया जाता था ।
- इस विश्वविद्यालय में 10000 से ज्यादा विद्यार्थी और 2000 से ज्यादा शिक्षक थे जो इन बच्चो को शिक्षा देने का कार्य करते थे ।
- इस यूनिवर्सिटी में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया , जापान , ईरान , ग्रीस , मंगोलिया , समेत दूसरे देशों के भी छात्र यहाँ पढ़ने के लिए आते थे ।
- नालंदा विश्वविद्यालय में ‘धर्म गूंज‘ नाम की एक लाइब्रेरी थी । जिसका मतलब ‘’सत्य का पर्वत’’ से था लाइब्रेरी के 9 मंजिलों में तीन भाग थे जिनके नाम ‘’रत्न रंजक’’ , ‘’रत्नोदधि’’ और ‘’रत्नसागर’’ थे।
- उस जमाने में भी इस विश्वविद्यालय में Literature , Astrology , Psychology , Law , Astronomy , Science , Warfare , History , Math , Architecture ,Economy , medicine, समेत कई विषय पढ़ाये जाते थे ।
- नालंदा यूनिवर्सिटी में हर्षवर्धन , धर्मपाल , वसुबंधु , धर्मकीर्ति , आर्यवेद , नागार्जुन के साथ की अन्य विद्वान लोग पढे हुए थे ।
- इस विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमे प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था । इसके अलावा इस परिसर में मठों की कतारें थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे । मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में 7 बड़े कक्ष थे इसके अलावा 300 अन्य कमरे भी थे ।
- इस विश्वविद्यालय में छात्रों का अपना एक संघ भी था । वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। यह संघ छात्रों से संबन्धित मामलों जैसे छात्रावासों का प्रबंध करता था ।
अब सवाल यह आता है कि इतनी सारी व्यवस्थाओं और इतने सारे लोगों को लाभ पहुँच रहा था उसके बावजूद भी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय का ध्वंस क्यों किया ? तो दोस्तों इसके पीछे कि एक कहानी है कि —
उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर बख्तियार खिलजी ने कब्जा कर लिया था , और एक बार वह काफी बीमार पद गया । उसने अपने हकीमों से बहुत इलाज करवाया लेकिन ठीक नहीं हुआ । और एक दम मरने कि स्थिति में पहुँच गया । तभी किसी व्यक्ति ने उसको सलाह दिया कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को दिखाये और इलाज करवाए , लेकिन खिलजी इसके लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि खिलजी ने बौद्धों को बहुत नुकसान पहुंचाया था । और इसके अलावा उसे अपने हकीमों पर बहुत ज्यादा विश्वास था । वह यह मानने को तैयार ही नहीं था कि भारतीय चिकित्सक उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान रखते हैं । लेकिन अपनी जान बचाने के लिए जान बचाने के लिए उसको नालंदा के आयुर्वेद विभाग के आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलवाना पड़ा फिर बख्तियार खिलजी ने आचार्य राहुल श्रीभद्र के सामने एक शर्त रखी। कि उनके द्वारा दी गयी दवाई को नहीं खाऊँगा अगर वे बिना दावा दिये ठीक करे सकते हैं तो इलाज करें । कुछ समय सोचने के बाद आचार्य राहुल श्रीभद्र ने उसकी शर्त को मान लिया और कुछ दिन बाद वे अपने साथ एक कुरान कि किताब लेकर पहुंचे और कहा कि इस कुरान कि पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढ़ लीजिये ठीक हो जाएंगे ।
बख्तियार खिलजी ने आचार्य के बताए अनुसार वैसा ही किया और ठीक हो गया । ऐसा कहा जाता है कि आचार्य राहुल श्रीभद्र नें कुरान के कुछ पन्नों पर एक दावा का लेप लगा दिया था जिसको वह थूक के साथ उन पन्नो को पढ़ता गया और दावा उसके पेट में चलता गया और वह ठीक हो गया । अब खिलजी इस बात से परेशान रहने लगा कि एक भारतीय शिक्षक को उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान था फिर उसने देश से ज्ञान और बौद्ध धर्म को मिटाने के लिए उसने नालंदा के महान पुस्तकालय में आग लगवा दिया जिसमें 90 लाख किताबें जलकर रख हो गईं । वह किताबें तीन महीने तक जल्दी रहीं विरोध करने पर उसने हजारों बौद्ध भिक्षुओं और शिक्षकों को मरवा दिया था ।